( तर्ज - दर्शन बिन जियरा तरसे ० )
नर ! जन्म सफल
करले अपना ॥ टेक ॥
काहेको दौरत विषयनके संग ?
यह है दो दिनका सपना || १ ||
धर गुरुभाव चरण पर ताके ।
मंत्र दिया वहिको जपना || २ ||
सत् महावाक्य सुनो गुरुहीसे ।
अनुभव के घरमें छपना || ३ ||
तुकड्यादास कहे सधवाले ।
जो कुछ होय तरो तपना || ४ ||
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